Saturday, 6 August 2016

याचना

कर जोड़ कर
नमन करुँ  माँ
नत-मस्तक हो 
क्षमा मागूँ मैं ।
         
         आज़ाद किया अँग्रेजों से पर ,
         अब भी तू परतंत्र दिखे माँ
         भ्रष्टाचार की जंजीरों से
         कैसे करुँ स्वतंत्र तुझे माँ ?

तेरी ही छाती पर मूँग दरें
ऐसे कुपुत्र क्यों जनीं, तूने माँ
नोंच रहे गिद्धों - सा तुझे
कैसे मनाऊँ आज़ादी, तेरी माँ ?
        
        तू दिल-ही- दिल में रोती, धुटती
        दिग्गज़ जन रहे रक्त की नदियाँ बहा
        अश्रु और रक्त, अब मिट्टी को सींच रहे
        जहाँ उगते थे स्वर्ण-बाली, वहाँ भ्रष्टाचारी उग रहे।

क्षमा-दान दे दे माँ,मुझको
मैं न लगा पाऊँगा अबकी
तेरी स्वतंत्रता का नारा
जब तक तू न होती स्वतंत्र।

                                         -मधु रानी
                                          06/08/2016

2 comments:

  1. बहुत उम्दा व प्रेरक रचना। बधाई मधु।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद, जेन्नी।

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