मित्र बनाओ, मित्रता करो, अवश्य करो।
जीवन में दो चार नहीं तो -
एक ही सही,
पर मित्र तो होने चाहिए अवश्य ही क्योंकि -
ये तब काम आते हैं, जब
हम हर रिश्तों से -
या तो संतुष्ट होते हैं, या -
कुछ रिश्ते टूट या छूट चुके होते हैं ।
दोनों स्थितियों में --
खुशियाँ भरती हैं जीवन में --''मित्रता''
क्योंकि --
पूर्ण रिश्तों की छलकती खुशियों
या --
छूट गए रिश्तों की दु:खद गाथाओं में
'संतुलन'
बनाती है --''मित्रता'' ।
राह से भटका दे - वह
मित्र नहीं, मित्रता नहीं ।
भटके जीवन को राह पर
लाती है --
'मित्रता' ।
--मधु रानी
15/03/2015

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