Monday, 8 August 2016

मित्रता


मित्र बनाओ, मित्रता करो, अवश्य करो।
जीवन में दो चार नहीं तो -
            एक ही सही,
पर मित्र तो होने चाहिए अवश्य ही  क्योंकि -
ये तब काम आते हैं, जब
            हम हर रिश्तों से -
या तो संतुष्ट होते हैं, या -
कुछ रिश्ते टूट या छूट चुके होते हैं ।
दोनों स्थितियों में --
खुशियाँ भरती हैं जीवन में --''मित्रता''
क्योंकि --
पूर्ण रिश्तों की छलकती खुशियों
या --
छूट गए रिश्तों की दु:खद गाथाओं में
           'संतुलन'
बनाती है --''मित्रता'' ।
राह से भटका दे - वह
मित्र नहीं, मित्रता नहीं ।
भटके जीवन को राह पर
लाती है --
           'मित्रता' ।

                                  --मधु रानी
                                    15/03/2015

No comments:

Post a Comment