Saturday, 6 May 2017

अबोध मन की अभिलाषा


मातृ दिवस के अवसर पर…
On the occasion of Mothers' ​Day.



माँ,
      आ, पास बैठ ज़रा, दो – चार बातें कर लूँ – ज़रा | 
सान्निध्य तेरा पाने को ढूंढ रहा, वक्त थोड़ा
बचपन बीता जाता मेरा, कब होगा आलिंगन तेरा |
     आँचल में तेरे छिपना चाहूँ, पर फुर्सत कहाँ तुझको – मुझको
     तेरा काम बाधा डाले, मेरा काम मुझे रोके |
कैसे पाऊँ वो दुलार, जो मिला गोद में तेरी
अब तो दीवार समस्याओं की, जद्दोजहद – जीवन जीने की |
     पाऊँ कैसे ममता तेरी, स्नेह – सिक्त ह्रदय में,
     जो तू है संजोए, मेरे लिए |
तू थक कर सोई, मैं रात भर जागा,
लोरी बिना जब नींद न आई, तब तेरे आँचल में सोया |
     कितना करती है तू, माँ, केवल काम ही काम,
     काश ! मैं होता बड़ा, तुझको देता हरदम आराम |
पर, तब बचपन मेरा रीता रहता, तेरे लाड़ से अछूता रहता,

माँ,
    आ, पास बैठ जरा, दो – चार बातें कर लूँ – जरा |
तू जाती जब छोड़, मुझे अकेला, सहमा – सहमा रहता हूँ मैं
हर आहट पर तेरे आने की, भ्रम में जीता हूँ मैं |
     मेरा मन भी करता, मैं साथ चलूँ तेरे
     अपने नन्हें हाथों से जीवन में, कुछ रंग भरूँ तेरे |
वह भीनी – सोन्ही महक, जब तेरे आँचल से आती
सब्जी, मक्खन, कोयले और मसाले की |
     तब मंत्रमुग्ध हो जाता हूँ मैं ,
     सोंच – सोंच ये, तू आती होगी |
खूब खेलूँगा गोद में तेरी, तू चूमेगी माथा मेरा |
माँ,
    आ, पास बैठ जरा, दो – चार बातें कर लूँ – ज़रा |
    
-- मधु रानी

15-10-2015

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