Tuesday, 24 March 2020

महामारी


सुना था,पढ़ा था,जाना था
पर पहचाना न था
क्या होती है महामारी
यह झेला न था, भोगा न था।
       दुर्दिन ये देखना पड़ेगा एक दिन
       किसी ने ये सोंचा भी न था
        दूर देश में इसके दस्तक से
        स्वयं को संभाला भी नहीं था।
कैसे धीमे - धीमे,
 फिर तीव्रता से
चपेट में अपनी, लोगों को
लेती जा रही ये महामारी।
          स्पर्श मात्र से फैली
           वस्तुओं में,कागजों में,
            प्लास्टिक में,धातुओं में,
            कपड़ों में,मानवों में।
कैसे मां शिशु को
रहे अनछुए?
कैसे परिवार,मित्र,संबंधी
रहें बन पराए?
             कैसे पकाएं भोजन
              डर - डर कर छुएं
              क्या - क्या धोएं,संक्रमण से
              कैसे और क्या - क्या बचाएं?
सारा घर,बिस्तर, कपड़े,
सारे नल,कुण्डी, दरवाज़े
सारे बर्तन, मेज़,कुर्सी
अलमारी, गेट, गाड़ी?
               कैसी फैली ये महामारी
                हाय,किस्मत फूटी हमारी
                 मर कर भी न मिले कांधा
                छूटा घर - बार, ये कैसी लाचारी?
बेबस - से बस देख रहे
अपनों का आना - जाना
हर दृष्टि शंका से भरी
हर एक को अछूत है माना।
                 बुद्धिजीवी बनें हमसब
                  घर में ही रहें अभी
                   जान बची तो मनाएंगे
                    उत्सव भी मिलकर सभी।
मानव - मानव का दुश्मन हुआ
नतीज़ा सामने है इसका
दोष किसे दें अब हम सब
जब कारण हम ही हैं इसके।
                     कुछ तो सबक लेना होगा
                      कुचक्र, मतभेद छोड़ना होगा
                       सात्विक जीवन जीना होगा
                      वरना यही सब झेलना होगा।
प्रेम - भाव से रहें अगर सब
सरहद - सीमा पार हो कोई।
सादा भोजन, सादा जीवन
दस्तक न दे महामारी कोई।
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                                 24/03/2020

2 comments:

  1. महामारी की कहानी सुना करते थे आज हम सब देख भी रहेसुंडा हैं. चारो तरफ दहशत का माहौल है. किसी के नज़दीक जा नहीं सकते. कोरोना संक्रमण पर बहुत सुन्दर रचना.

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    1. बहुत - बहुत आभार जेनी😊

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