Monday, 18 May 2020

पुकार




हे शिव शंकर, हे संहारक,
संहार करो महामारी का।

क्या कोई अमृत,कोई संजीवनी
उपचार नहीं इस बीमारी का?

खोलो त्रिनेत्र,भस्म करो
तांडव मचा रहे विषाणु का।

बन दानव,लील रहा मानव को,
कर प्रहार,अंत करो इस दानव का।

बना गरल,मानव - जाति का यह,
हे नीलकंठ, कल्याण करो मानव का।

सुन लो पुकार,कर दो उद्धार
प्राणी जगत के हर प्राणी का।

विषपान किया था, जग-कल्याण हेतु
फिर आओ,औषध लेकर अमृत - सा।

23/04/2020

Sunday, 5 April 2020

मानव - धर्म




देश में कठिन दौर आया है
संकट का बादल छाया है।
लड़ना है मिलकर सबको
पर आपस में नहीं लड़ना है।
          तू - तू, मैं - मैं छोड़ो अब
          भेद - भाव भूलो सब।
          जात - पात, ऊंच - नीच छोड़
           मानव - धर्म से जुड़ो सब।
राजनीति को परे रखकर
मानवता को सर्वोपरि मानकर
साथ करोड़ों हाथ हों तो
चिंता की क्या बात हो?
           एक सूत्र में बंध कर ही
            एकता के बल पर ही।
            लड़ेंगे हम बीमारी से
            अपनों की लाचारी से।
जिन्हें बचा न पाए हम, उनको
वापस ला तो नहीं सकते।
किन्तु एक होकर हम,
जाने से औरों को बचा सकते हैं।
            ये समय नहीं है, बहसों का
            ना ही  है धर्म पर चर्चा का।
             कुछ सोचो तनिक रुक कर तुम
             क्या देश नहीं है ये हम सबका?
उपदेश लगें ये बातें तो
' बेशक ', धज्जी उड़ा देना।
पर मज़ाक - मज़ाक में अपना
अनमोल जीवन न गंवा देना।
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               मधु रानी
               02/04/2020

Tuesday, 24 March 2020

महामारी


सुना था,पढ़ा था,जाना था
पर पहचाना न था
क्या होती है महामारी
यह झेला न था, भोगा न था।
       दुर्दिन ये देखना पड़ेगा एक दिन
       किसी ने ये सोंचा भी न था
        दूर देश में इसके दस्तक से
        स्वयं को संभाला भी नहीं था।
कैसे धीमे - धीमे,
 फिर तीव्रता से
चपेट में अपनी, लोगों को
लेती जा रही ये महामारी।
          स्पर्श मात्र से फैली
           वस्तुओं में,कागजों में,
            प्लास्टिक में,धातुओं में,
            कपड़ों में,मानवों में।
कैसे मां शिशु को
रहे अनछुए?
कैसे परिवार,मित्र,संबंधी
रहें बन पराए?
             कैसे पकाएं भोजन
              डर - डर कर छुएं
              क्या - क्या धोएं,संक्रमण से
              कैसे और क्या - क्या बचाएं?
सारा घर,बिस्तर, कपड़े,
सारे नल,कुण्डी, दरवाज़े
सारे बर्तन, मेज़,कुर्सी
अलमारी, गेट, गाड़ी?
               कैसी फैली ये महामारी
                हाय,किस्मत फूटी हमारी
                 मर कर भी न मिले कांधा
                छूटा घर - बार, ये कैसी लाचारी?
बेबस - से बस देख रहे
अपनों का आना - जाना
हर दृष्टि शंका से भरी
हर एक को अछूत है माना।
                 बुद्धिजीवी बनें हमसब
                  घर में ही रहें अभी
                   जान बची तो मनाएंगे
                    उत्सव भी मिलकर सभी।
मानव - मानव का दुश्मन हुआ
नतीज़ा सामने है इसका
दोष किसे दें अब हम सब
जब कारण हम ही हैं इसके।
                     कुछ तो सबक लेना होगा
                      कुचक्र, मतभेद छोड़ना होगा
                       सात्विक जीवन जीना होगा
                      वरना यही सब झेलना होगा।
प्रेम - भाव से रहें अगर सब
सरहद - सीमा पार हो कोई।
सादा भोजन, सादा जीवन
दस्तक न दे महामारी कोई।
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                                 24/03/2020