Sunday, 13 January 2019

दोष न दो फिर ईश्वर को

-: दोष न दो फिर ईश्वर को :-

ऐ मानव!
तेरे ही कुकर्मों का फल है
कि आज तू मर रहा
अत्यधिक ठंड और
अत्यधिक गर्मी से।
पारा निरंतर गिर रहा
ठंड जाने का नाम ही नहीं ले रही
मानो इस बार सालों भर
डेरा जमाए रखेगी
या हमारी जान लेकर ही जाएगी।
यही रहेगा हाल गर्मियों में, तो
सोचो, पारा, कहां तक बढ़ता जाएगा
रुकेगा कहीं या यूं ही हमें जलाएगा।
पृथ्वी या तो बर्फ या आग बनती  जा रही
सोचा है कभी ऐसा क्यों हो रहा है?
सोचा तो होगा, शायद, जानता  भी है तू
परंतु किया क्या और कर क्या रहा है?
एक - दूसरे पर टालता जा रहा
प्रकृति का दोहन करता जा रहा
पर, भुगत कौन रहा है आज ?
ठंड से मरो या गर्मी से
भूकंप से मरो या तूफान से।
दोष सिर्फ ईश्वर को देते हो
क्या ईश्वर ने ऐसी ही दुनिया बनाई थी?
क्या ईश्वर, प्रकृति को नष्ट कर रहा है ?
अगर तुम, बचा नहीं सकते कुछ  तो
नष्ट भी तो न करो।
जियो सुख से, औरों को भी जीने दो
प्रकृति के मित्र बनो, खिलवाड़ न
करो
वर्ना जब यह समीकरण उलट जाएगा
तब होगा केवल और केवल
विनाश और  विनाश।
कुछ तो डरो भविष्य से
कुछ तो बचाओ अपने
बच्चों के लिए भी
पर शिक्षा के अभाव में यहां
कौन किसे समझाए
फिर भुगतो प्रकृति का कहर
दोष न दो फिर ईश्वर को।

-मधु रानी
12/01/2018

No comments:

Post a Comment