मातृ दिवस के अवसर पर…
On the occasion of Mothers' Day.
माँ,
आ, पास बैठ ज़रा, दो – चार बातें कर लूँ – ज़रा |
सान्निध्य तेरा पाने को ढूंढ रहा, वक्त थोड़ा
बचपन बीता जाता मेरा, कब होगा आलिंगन तेरा |
आँचल में तेरे छिपना चाहूँ, पर
फुर्सत कहाँ तुझको – मुझको
तेरा काम बाधा डाले, मेरा काम मुझे
रोके |
कैसे पाऊँ वो दुलार, जो मिला गोद में तेरी
अब तो दीवार समस्याओं की, जद्दोजहद – जीवन जीने की |
पाऊँ कैसे ममता तेरी, स्नेह –
सिक्त ह्रदय में,
जो तू है संजोए, मेरे लिए |
तू थक कर सोई, मैं रात भर जागा,
लोरी बिना जब नींद न आई, तब तेरे आँचल में सोया |
कितना करती है तू, माँ, केवल काम
ही काम,
काश ! मैं होता बड़ा, तुझको देता
हरदम आराम |
पर, तब बचपन मेरा रीता रहता, तेरे लाड़ से अछूता रहता,
माँ,
आ, पास बैठ जरा, दो – चार बातें कर
लूँ – जरा |
तू जाती जब छोड़, मुझे अकेला, सहमा – सहमा रहता हूँ मैं
हर आहट पर तेरे आने की, भ्रम में जीता हूँ मैं |
मेरा मन भी करता, मैं साथ चलूँ
तेरे
अपने नन्हें हाथों से जीवन में,
कुछ रंग भरूँ तेरे |
वह भीनी – सोन्ही महक, जब तेरे आँचल से आती
सब्जी, मक्खन, कोयले और मसाले की |
तब मंत्रमुग्ध हो जाता हूँ मैं ,
सोंच – सोंच ये, तू आती होगी |
खूब खेलूँगा गोद में तेरी, तू चूमेगी माथा मेरा |
माँ,
आ, पास बैठ जरा, दो – चार बातें कर
लूँ – ज़रा |
-- मधु
रानी
15-10-2015

