Sunday, 26 March 2017

मिथ्य और सत्य

जीवन लगता मिथ्या
ये संसार मिथ्या
रिश्ते - नाते मिथ्या
सपने बुनना मिथ्या
घर, परिवार, गृहस्थी
धन – दौलत, संपत्ति
सब के सब मिथ्या |
सत्य है केवल -- मृत्यु
भ्रम में जी रहे हम सब
सपनो की दुनिया में
खोए हुए से ........|
बेफिक्री की मस्ती में
अनजान से .........|
भाग - दौड़ कर
जीवन - भर
धन कमाते, संचय करते
सुनहरे भविष्य के
सुन्दर सपने बुनते
बचा – बचा कर कौड़ी – कौड़ी
सुख के दिन की
प्रतीक्षा करते |
पेट काट कर, कष्ट झेल कर
बच्चों को पैरों पर
खड़ा कराते
धन है जिन्हें अथाह, वह भी
संघर्ष का ही तो प्रतिफल है  |
काँटों भरी राह पर हम
चलते रहते, जीवन - भर |
जाने किसे सुख कहते हैं
उम्मीद में उसके उम्र गई
आँखें पथराई, हिम्मत गई
पर हम न टूटे
अडिग रहे
सपने भ्रम के बुनते रहे |
मुँह बाए काल खड़ा
ग्रास बनाने को, पीछे
हम अनभिज्ञ, अबूझ
लगे रहे सपने साकार
करने में  |
अभी पूरा हुआ कहाँ ;
ऐ मालिक –
भेजा है तूने जिस काम से
धरती पर
अधूरे सपने, अधूरी जिंदगी
अधूरी जिम्मेदारी, अधूरा परिवार,
बीच मँझधारमें क्यों लेने आया
ऐ काल – तू रुक जा अभी
बस दो पल और बख्श दे तू
पूरे कर लूँ – काम सभी
अभी तो कुछ किया नहीं
अभी तो जी भर जिया नहीं   |
पर सुनता कहाँ यमराज हमारी
क्षण - भर में भ्रम तोड़ हमारा
साक्षात्कार कराता मौत से हमारा
यही सत्य है, मनवाता हमें
मृत्यु का वरण करवाता हमें  |
उसे क्या हमारे टूटे सपनों से
उजड़े – बिखड़े घर – परिवारों से |
भ्रम टूटे तो रोना पड़ता ही है
सपना टूटे तो दुःख होता ही है
मौत सत्य है, मान इसे
जीवन को जीना पड़ता ही है  |

मधु रानी
07/03/2017




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