हे मानव,
जला आज ,
भीतर के रावण को
बन जा फिर से
राम तू ...... ।
जैसे बालपन में था
अपनी माँ का
सपूत तू......।
माँ भी थी
इठलाती ,
बन राम की
कौशल्या
अब मनाती शोक
कहाँ गया
मेरा लल्ला ?
शुभ दिन है
आया आज
द्वेष त्याग
बढा आस
असुर नहीं
इन्सान बन।
राह देखती,
निस्तेज आँखें
द्वार खुला है
आस में तेरे ।
बन राम अब , लौट अयोध्या
प्रेमभाव और स्वर्ग यही है ।
अंतरमन हो शुद्ध सभी के
जीवन का उत्सर्ग यही है ।
बुराई पर अच्छाई की
जीत का अर्थ यही है ।
विजयादशमी या
दशहरा का पर्व यही है ।
अपने अंदर के
अहं को जला
पुतला नहीं
अपने ' मैं ' को जला
जल रहा गर रावण आज
जलाने वाला भी तो हो
राम आज
फिर से आए , राम - राज ।
- मधु रानी11/10/2016

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