क्षणिकाएँ...
१. कभी-कभी
खामोश रहना ही
सुकून देता है,
पर ये भी तब
मयस्सर नहीं होता
जब जग आपकी
चुप्पी तुड़वा देता है.....।
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२. थक कर जीवन
की तपिश से
शीतल छाँव
कहाँ तलाशूँ ?
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३. शब्द - शब्द को जोड़ रही
तालमेल न बैठा पाऊँ
द्विविधा ये कि कैसे बने
शब्दों की सुंदर माला
उद्वेलित मन की हाला (व्यथा)
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४. ये जीवन जब
बीता आधा
ख्याल तब
ये आया -
कुछ किया नहीं
कुछ जिया नहीं
जीवन को यूँ ही
गवाँ दिया ........ ।
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५. उलझनों को
सुलझाते - सुलझाते
कुछ ऐसे उलझे कि
जब तक समझे
जीवन को हम
उम्र हद से बढ़ा लिया ,....|
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६. कहते हैं वो "लिखना"
बेकारों का काम है
पर लिखना
क्या इतना आसान है ?
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७. मीठी वाणी
कहाँ से लाऊँ
जब जीवन ने
दिया जहर हो .,....
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८. पाप बहुत किए
हैं मैंने
है अहसास
इसका हमें
पश्चाताप पर,
करुँ कैसे
कड़वाहट ने
छीनी मिठास है |
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९. उम्र के ढालान पर
मर - मर कर क्यूँ जिया जाए
बहुत जी लिया मर्ज़ी से अपनी
अपनों की मर्जी से अब
फिर से क्यों न जिया जाए |
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१०. जिंदगी का फलसफा है
बस इतना - सा
दूसरों की खुशी मेें
अपनी खुशी ढूंढी जाए |
-मधु रानी
19/05/2016

