Friday, 17 August 2018

जीवन की सार्थकता


जब हो -------
एक निश्चिंतता सबके माथे पर
एक ही निश्छलता हर चेहरे पर |
सही काम हर हाथ को,
अप्रतिम सुन्दरता, हर मुखड़े पर |
असीम मृदुता हर वाणी में
पर्याप्त कोमलता हर नारी में |
विशुद्ध सरलता हर मानव में
आँखों में तरलता हर दानव में |
सूरज की उज्ज्वलता हर कुनवे में,
अपूर्व विलक्षणता हर बच्चे में |
सच्ची वचनवद्धता हर नेता में,
जनसेवा की भावुकता हर अभिनेता में |
पर्याप्त उत्पादकता हर सामग्री की,
सहज उपलब्धता हर गरीब तक |
चारित्रिक साधुता हर साधू में,
स्वाभाविक विनम्रता हर धर्म के गुरुओं में |
सम्यक योग्यता हर कर्मी में,
पूर्ण उत्तरदायित्वता हर पदाधिकारी में |
सिखाने की तत्परता हर गुरु में,
सीखने की उत्सुकता हर शिष्य में |
ईमान की दृढ़ता हर किसी में
हो दया की बहुलता हम सभी में |
एक दिवा – स्वप्न सा लगता है यह सब शायद,
पर जीवन की सार्थकता है, इसी में |


मधु रानी
अगस्त 2015

Friday, 8 June 2018

समुद्र



कुछ लेकर कुछ देने वाले
तो बहुत मिले |
कुछ देकर, बदले में
लेने वाले भी
बहुत मिले |
पर सिर्फ देने वाला ---
`ईश्वर` के अतिरिक्त,
बस एक ही देखा |
वह देता ही रहता है |
बिन माँगे तो देता ही है,
मांगो तब भी झोली भरता है |
उसकी आती लहरें, छोड़ जाती हैं तट पर,
सीपियाँ और बहुमूल्य रत्न और पत्थर |
मानो तो वह भी ---
ईश्वर ही है, शायद
जीवन – दाता भी उसे जानो |
कहते हैं – समुद्र या सागर भी उसे
मतभेद मिटा देता है समस्त
जब बहता – जोड़ता देश – विदेश |
उसके तल में धन की खान,
उसके तल में जीवन – प्राण
क्षार देता स्वाद हमें
मोती से बनता आभूषण |
‘समुद्र देवता’ – कहना
अतिशयोक्ति नहीं,
गर सागर हो शांत |
पर ‘दावानल’ बना देती
है उसे ---
पृथ्वी की तीव्र हलचल,
और कर देती है उसे अशांत |
जीवन – लीला के विनाश में फिर,
सागर हो जाता है बदनाम,
पर ----
फिर से जीवन बसाने में भी
फिर से वही आता है काम |
उसकी उठती – गिरती लहरों में,
हम देख सकते हैं –
जीवन के उतार – चढ़ाव,
फिर भी बहते रहना, ही है
जीवन को जीते जाना |
यहाँ भी सागर सिखा गया हमें
‘सलीका’, जीवन जीने का
इस तरह कुछ लिए बिना ही
फिर कुछ ‘दे’ गया सागर |
- मधु रानी
मार्च 2015

Thursday, 8 March 2018

कहां जा रही है यह पीढ़ी?


एक क्षण ऐसा भी
जीवन में मेरे आया
जब मजबूर हूं सोचने पर
कहां जा रही है यह पीढ़ी?

वाकया बारहवीं बोर्ड परीक्षा-कक्ष की
मैं नियुक्त थी वीक्षक के रूप में
एक अति सुंदर बाला परीक्षार्थी ने
बरबस ध्यान खींचा मेरा ।

वह बाला जैसे आयी हो
सौंदर्य प्रतियोगिता जीतने
ओष्ठ-लाली से नख-लाली तक
सजी ऐसे जैसे दुल्हन हो कोई ।
       
केश -- सज्जा, नयनों में काजल
पहनावा चुस्त, लड़कों सदृश्य
तिस पर बातें करती रही
ताक -- झांक भी इधर -- उधर ।

टोका मैंने तो आंखें दिखाती
मुझसे ही लगी उलझने
मुंह लगाना मैं ठीक न समझी
अपने कार्य में रही मगन ।

पकड़ी गई थी वह
पहले दिन भी
कक्ष में प्रवेश करने वक़्त
मेरे द्वारा ही ।
       
इसलिए मेरी नजर थी उसपर
पर हद ही कर दी इसबार वह
पूछती रही आजू -- बाजू सभी से
मना करने पर असभ्यता से पेश आयी ।

तभी, जब बहस मुझसे थी कर रही
अचानक दंडाधिकारी का हुआ प्रवेश
उनके हस्तक्षेप पर वह फिर
उलझ पड़ी उनसे भी ।

हश्र उसका देख
हूं मैं आहत
दोषी सब हैं इसके
पर दोष किसे दें?

क्या होगा इस देश का भविष्य ?
जब ऐसे बच्चे होंगे देश के कर्णधार?
सभी बच्चे ऐसे नहीं हैं मगर
हमारे समय तो एक भी ऐसे नहीं थे शायद....!
         
बड़ों का मान, शिक्षक का आदर
कहां गए ये संस्कार सारे ?
हम भी तो बच्चे थे कभी
इतनी असभ्यता हमने न दिखाई
       
कहां जा रही है यह पीढ़ी ?
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-- मधु रानी
20/03/2017

Saturday, 24 February 2018

सच कहूं तो...

बड़ी - बड़ी अच्छी बातें करते लोग,  बहुत देखे
पर इन पर अमल करने वाले लोग, बहुत कम देखे ।

रिश्तों को तोड़ने वाले लोग, बहुत देखे
इन्हें जोड़ने  वाले लोग, बहुत कम देखे ।

कर्तव्यनिष्ठा के हिमायती, बहुत देखे
पर इसकी कद्र करते लोग, बहुत कम देखे ।

गुणों को बखान ने वाले लोग, बहुत देखे
पर इन्हें अपनाने वाले लोग,  बहुत कम देखे ।

दोस्त बनाने वाले लोग, बहुत देखे दोस्ती निभाने वाले लोग, बहुत कम देखे ।

मीठी बातें करने वाले लोग, बहुत देखे
जीवन में मिठास घोलने वाले, बहुत कम देखे ।

खुशियां मनाने वाले लोग, बहुत देखे
 खुशियां बांटने वाले लोग, बहुत कम देखे ।

बच्चों की जिम्मेदारी निभाने वाले बहुत देखे
मां - बाप के साथ निबाहने वाले बहुत कम देखे

ईमान की बातें करते लोग, बहुत देखे
पर इमानदार बनते लोग,  बहुत कम देखे ।

सच कहूं तो.... अच्छी बातें सब करते हैं,
 फिर अच्छा बनने से लोग, क्यों कतराते हैं?

मधु रानी