Tuesday, 5 September 2017

शिक्षक हूँ …



शिक्षक हूँ
बच्चों को सभ्यता सिखाती हूँ
सभ्य समाज की नींव रखती हूँ
पर, स्वयं सम्मान की मोहताज़ हूँ |

शिक्षक हूँ
कुरीतियों को समाज से दूर करती हूँ
ज्ञान ही नहीं मनुष्यता भी सिखाती हूँ
पर समाज और मनुष्य के प्रेम की मोहताज हूँ |
कर्मठ हूँ
कर्म करती हूँ, बच्चों को सिखाती हूँ
कर्म करो फल की चिंता न करो
फल तो दूर, दो टूक प्रशंसा के शब्द की मोहताज़ हूँ |

शिक्षक हूँ
पढ़ाने – लिखाने के साथ, कागजातों – रिपोर्टों
खिलाने – पिलाने, की भी जिम्मेदारी निभाती हूँ
फिर भी कोई खुश नहीं, ख़ुशी पाने की मोहताज हूँ |

शिक्षक हूँ
दिन – भर शारीरिक – मानसिक श्रम करती हूँ
घर – बार, पति, बच्चे, सब त्याग, काम के बोझ तले दबी हूँ
एक साथ कई काम हैं, फुर्सत के दो पल की मोहताज हूँ |

शिक्षक हूँ
 पढ़ाना सिखाना काम है, पर हम है रसोइये भी,
ठेकेदार और राजमिस्त्री भी, चुनाव कराना और भी कई सैकड़ों काम हैं
इसमें पिसती अपने खोए अस्तित्व को पहचानने की मोहताज हूँ |

शिक्षक हूँ
अब सोचती हूँ, नाहक बनी शिक्षक
कुछ भी और बनना था, कोल्हू का बैल तो न बनती
क्या थी, क्या हो गई मैं, क्या बताऊँ किस – किस की मोहताज हूँ |

शिक्षक हूँ
भारत में, यही दोष है शायद
शेष सभी देशों में ये गत नहीं है शिक्षकों की
मान – सम्मान, पैसा, सब है वहाँ, शायद इसलिए
आज गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का मोहताज़ है देश |

शिक्षक हूँ
ईमानदारी से कर्म करती हूँ
देश के सपूतों को पैरों पर खड़ा करती हूँ
स्वयं भले अस्वस्थ हो, बैसाखी की मोहताज हूँ |
हमारे शिक्षक
भाग्यशाली थे, जिन्हें सिर्फ ज्ञान बाँटना होता था
विद्यालय सरस्वती का मंदिर था, अब तो होटल लगता है
सारे काम होते हैं, पर बच्चे शिक्षा के मोहताज हैं |
आज के शिक्षक
कोई व्यस्त है, भवन निर्माण कार्य में
कोई कागजातों में घुसे किरानी बने हैं
कोई भेजे गए चुनाव कराने तो
कोई व्यस्त है शौचालय और नल लगवाने में
क्या – क्या करे आखिर, और पढाएँ कब
फिर भी चाहिए उत्तम परीक्षा फल
कैसी व्यवस्था, जिसमें जीने के मोहताज़ हैं हम ?
-- मधु रानी
05-09-2017

03.00  am

No comments:

Post a Comment