Sunday, 29 January 2017

यादें ------ भूली बिसरी

क्षणिकाएँ (दोस्त – दोस्ती)



१.      घर के पिछवाड़े
अमवा के डारे 
खेला करते
हम तीन मतवारे
ऐसे बीते
बचपन हमारे ------ !
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२.      एक  चढ़ता पहले
दूजी मुझे ठेले
तीन डार पर तीनों
लगा लेते डेरे |
ऐसे बीते बचपन हमारे ------ !
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३.      अम्मा ढूँढें आगे
बहना पिछवाड़े
कोई ढूँढ न पाए
अपने तो वारे – न्यारे
ऐसे बीते बचपन हमारे ------ !
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४.      पन्द्रह की कमसिन
उम्र की सखियाँ
सिखा गईं कई
शोख मस्तियाँ
कैसी अल्हड़ थीं
मद – मस्त जवानियाँ !
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५.      आया बसंत जीवन में
महाविद्यालय के प्रांगण में ,
मित्रों की टोली संग जब
ईद – दीवाली मनाएं हम |
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-- मधु रानी
18/05/2016

Monday, 16 January 2017

जैसे को तैसा...

सुना,
जहरीली शराब पीकर
दम तोड़ दिया कुछ लोगों ने
पता चला ये शराब
इन्होंने ही बनायी थी |
जीवन में ऐ जहर घोलने वालों
जीवन से खिलवाड़ करने वाले लोगों
क्या हक है, किसने दिया?
फलों,सब्जियों को रंगने का
तेल,हल्दी में मिलावट करने का
तरबूज में मीठा जहर भरने का
बच्चों के दूध में शैम्पू घोलने का
मिठाई को जहरीला बनाने का
दवाओं को नक़ली बेचने का
घी में चर्बी मिलाने का
जीवन को नरक बनाने का |
क्या ईश्वर का खौफ़ नहीं तुझको?
क्या तेरे बच्चे नहीं जीते?
ये जहर उन्हें भी दे पिला
क्या करेंगे वे अकेला जी कर के |
क्यूँ स्वर्ग को रहा तू नरक बना
पैसों की इतनी चाहत है तो
मेहनत को यूँ बेकार न कर
जब इतनी मेहनत की ही है तो
सही राह पर चल कर कमा |
जीवन देना वश में नहीं तेरे तो
लेने का भी दु:साहस न कर
पछतायेगा उस दिन जब तेरे बच्चे
होंगे तेरे जहर का शिकार |
तुझसे तो भिखारी भले
जो हराम की खाता
पर पाप नहीं कमाता है
तू तो मेहनत भी करता है
और पाप भी कमाता है |
तुझ जैसों की यही सजा हो
तेरा जहर, तुझे ही पीना हो |
हवाओं में विष, घोलने वाले
क्या ‘तू’, साँस, ले पायेगा?


                                           -मधु रानी 
                                             27/12/2016