Sunday, 14 August 2016

…फिर कैसी साम्प्रदायिकता?



(70वें स्वतंत्रता दिवस पर)

देश का गुरूड़ है तिरंगा,
देश की जान है एकता...
...फिर कैसी साम्प्रदायिकता?

       देश का अभिमान है-- देशभक्ति
       देश की प्राण है-- जनता…
       ...फिर कैसी साम्प्रदायिकता?

देश में अपार है-- प्रतिभा
देश की शान हैं-- युवा…
... फिर कैसी साम्प्रदायिकता?

       देश में हैं धर्म अनेक
       मिली सबको है समानता…
       …फिर कैसी साम्प्रदायिकता?

देश है सभी का
हिन्दू हो या मुसलमाँ…
…फिर कैसी साम्प्रदायिकता?

       देश के त्योहार हैं-- ईद, होली
       बिना भेदभाव सबको गले मिलाता…
       …फिर कैसी साम्प्रदायिकता?

देश के सरताज हैं सर्वधर्म,
सिख, इसाई, हिन्दू, इसलाम…
... फिर कैसी साम्प्रदायिकता?

       भारत की पहचान हैं सारे
       भगत, अम्बेदकर, नौरोजी, मौलाना…
       ... फिर कैसी साम्प्रदायिकता?

गर छोड़ो राजनीति
अपनाओ मानवता…
... तो फिर कैसी साम्प्रदायिकता?

       नेता हमें हैं लड़ाते
       पर लोग शांति चाहते…
       ... फिर क्यों है साम्प्रदायिकता?

न आओ झाँसे में उनके
जो देश को डुबाते…
...बढ़ाते साम्प्रदायिकता।

       दुश्मन थे- अंग्रेज़ हमारे
       अब आपस में हम क्यों लड़ें?
       ये कैसी साम्प्रदायिकता?

हम एक हैं, कसम से,
न तोड़ो हमें फिर से…
…मिटा देंगे हम, साम्प्रदायिकता।

Monday, 8 August 2016

मित्रता


मित्र बनाओ, मित्रता करो, अवश्य करो।
जीवन में दो चार नहीं तो -
            एक ही सही,
पर मित्र तो होने चाहिए अवश्य ही  क्योंकि -
ये तब काम आते हैं, जब
            हम हर रिश्तों से -
या तो संतुष्ट होते हैं, या -
कुछ रिश्ते टूट या छूट चुके होते हैं ।
दोनों स्थितियों में --
खुशियाँ भरती हैं जीवन में --''मित्रता''
क्योंकि --
पूर्ण रिश्तों की छलकती खुशियों
या --
छूट गए रिश्तों की दु:खद गाथाओं में
           'संतुलन'
बनाती है --''मित्रता'' ।
राह से भटका दे - वह
मित्र नहीं, मित्रता नहीं ।
भटके जीवन को राह पर
लाती है --
           'मित्रता' ।

                                  --मधु रानी
                                    15/03/2015

Saturday, 6 August 2016

याचना

कर जोड़ कर
नमन करुँ  माँ
नत-मस्तक हो 
क्षमा मागूँ मैं ।
         
         आज़ाद किया अँग्रेजों से पर ,
         अब भी तू परतंत्र दिखे माँ
         भ्रष्टाचार की जंजीरों से
         कैसे करुँ स्वतंत्र तुझे माँ ?

तेरी ही छाती पर मूँग दरें
ऐसे कुपुत्र क्यों जनीं, तूने माँ
नोंच रहे गिद्धों - सा तुझे
कैसे मनाऊँ आज़ादी, तेरी माँ ?
        
        तू दिल-ही- दिल में रोती, धुटती
        दिग्गज़ जन रहे रक्त की नदियाँ बहा
        अश्रु और रक्त, अब मिट्टी को सींच रहे
        जहाँ उगते थे स्वर्ण-बाली, वहाँ भ्रष्टाचारी उग रहे।

क्षमा-दान दे दे माँ,मुझको
मैं न लगा पाऊँगा अबकी
तेरी स्वतंत्रता का नारा
जब तक तू न होती स्वतंत्र।

                                         -मधु रानी
                                          06/08/2016