देश में कठिन दौर आया है
संकट का बादल छाया है।
लड़ना है मिलकर सबको
पर आपस में नहीं लड़ना है।
तू - तू, मैं - मैं छोड़ो अब
भेद - भाव भूलो सब।
जात - पात, ऊंच - नीच छोड़
मानव - धर्म से जुड़ो सब।
राजनीति को परे रखकर
मानवता को सर्वोपरि मानकर
साथ करोड़ों हाथ हों तो
चिंता की क्या बात हो?
एक सूत्र में बंध कर ही
एकता के बल पर ही।
लड़ेंगे हम बीमारी से
अपनों की लाचारी से।
जिन्हें बचा न पाए हम, उनको
वापस ला तो नहीं सकते।
किन्तु एक होकर हम,
जाने से औरों को बचा सकते हैं।
ये समय नहीं है, बहसों का
ना ही है धर्म पर चर्चा का।
कुछ सोचो तनिक रुक कर तुम
क्या देश नहीं है ये हम सबका?
उपदेश लगें ये बातें तो
' बेशक ', धज्जी उड़ा देना।
पर मज़ाक - मज़ाक में अपना
अनमोल जीवन न गंवा देना।
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मधु रानी
02/04/2020
