Friday, 8 June 2018

समुद्र



कुछ लेकर कुछ देने वाले
तो बहुत मिले |
कुछ देकर, बदले में
लेने वाले भी
बहुत मिले |
पर सिर्फ देने वाला ---
`ईश्वर` के अतिरिक्त,
बस एक ही देखा |
वह देता ही रहता है |
बिन माँगे तो देता ही है,
मांगो तब भी झोली भरता है |
उसकी आती लहरें, छोड़ जाती हैं तट पर,
सीपियाँ और बहुमूल्य रत्न और पत्थर |
मानो तो वह भी ---
ईश्वर ही है, शायद
जीवन – दाता भी उसे जानो |
कहते हैं – समुद्र या सागर भी उसे
मतभेद मिटा देता है समस्त
जब बहता – जोड़ता देश – विदेश |
उसके तल में धन की खान,
उसके तल में जीवन – प्राण
क्षार देता स्वाद हमें
मोती से बनता आभूषण |
‘समुद्र देवता’ – कहना
अतिशयोक्ति नहीं,
गर सागर हो शांत |
पर ‘दावानल’ बना देती
है उसे ---
पृथ्वी की तीव्र हलचल,
और कर देती है उसे अशांत |
जीवन – लीला के विनाश में फिर,
सागर हो जाता है बदनाम,
पर ----
फिर से जीवन बसाने में भी
फिर से वही आता है काम |
उसकी उठती – गिरती लहरों में,
हम देख सकते हैं –
जीवन के उतार – चढ़ाव,
फिर भी बहते रहना, ही है
जीवन को जीते जाना |
यहाँ भी सागर सिखा गया हमें
‘सलीका’, जीवन जीने का
इस तरह कुछ लिए बिना ही
फिर कुछ ‘दे’ गया सागर |
- मधु रानी
मार्च 2015