एक क्षण ऐसा भी
जीवन में मेरे आया
जब मजबूर हूं सोचने पर
कहां जा रही है यह पीढ़ी?
वाकया बारहवीं बोर्ड परीक्षा-कक्ष की
मैं नियुक्त थी वीक्षक के रूप में
एक अति सुंदर बाला परीक्षार्थी ने
बरबस ध्यान खींचा मेरा ।
वह बाला जैसे आयी हो
सौंदर्य प्रतियोगिता जीतने
ओष्ठ-लाली से नख-लाली तक
सजी ऐसे जैसे दुल्हन हो कोई ।
केश -- सज्जा, नयनों में काजल
पहनावा चुस्त, लड़कों सदृश्य
तिस पर बातें करती रही
ताक -- झांक भी इधर -- उधर ।
टोका मैंने तो आंखें दिखाती
मुझसे ही लगी उलझने
मुंह लगाना मैं ठीक न समझी
अपने कार्य में रही मगन ।
पकड़ी गई थी वह
पहले दिन भी
कक्ष में प्रवेश करने वक़्त
मेरे द्वारा ही ।
इसलिए मेरी नजर थी उसपर
पर हद ही कर दी इसबार वह
पूछती रही आजू -- बाजू सभी से
मना करने पर असभ्यता से पेश आयी ।
तभी, जब बहस मुझसे थी कर रही
अचानक दंडाधिकारी का हुआ प्रवेश
उनके हस्तक्षेप पर वह फिर
उलझ पड़ी उनसे भी ।
हश्र उसका देख
हूं मैं आहत
दोषी सब हैं इसके
पर दोष किसे दें?
क्या होगा इस देश का भविष्य ?
जब ऐसे बच्चे होंगे देश के कर्णधार?
सभी बच्चे ऐसे नहीं हैं मगर
हमारे समय तो एक भी ऐसे नहीं थे शायद....!
बड़ों का मान, शिक्षक का आदर
कहां गए ये संस्कार सारे ?
हम भी तो बच्चे थे कभी
इतनी असभ्यता हमने न दिखाई
कहां जा रही है यह पीढ़ी ?
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-- मधु रानी
20/03/2017