चिर प्रतीक्षित पल
माँ, बाप, भाई, बहन प्रसन्न
माँ कभी-कभी नज़र आ रहीं हैं
काम का बोझ, तिस पर जोड़ों का दर्द
जब दिखतीं, लँगड़ाती हुईं
मैं अन्दर-ही-अन्दर रोती हुई सोचती –
क्या, ज़रूरी है यह विवाह?
क्या, मैं माँ-बाप का नहीं बन सकती सहारा?
नहीं रह सकती उनके साथ, आजीवन?
फिर यह आडम्बर क्यूँ?
बूढ़ी हड्डियों में दर्द
फिर भी वैवाहिक रीति-रिवाज़
पिता दौड़ रहे, देख-रेख कर रहे
कोई न रह जाए कमी
बारातियों के स्वागत में
बिटिया के सुख का सवाल था
मेरा हृदय विदीर्ण होता हुआ
मेरा हृदय विदीर्ण होता हुआ
आँखें अश्रुपूरित, छलछलाती हुईं
न कोई पूछ रहा हाल है मेरा
न बता पा रही हूँ मैं कुछ
कहना क्या? जी चाहता है
कहूँ चीख कर, माँ-बाप से लिपट कर
नहीं जाना मुझे, छोड़ कर इस देहरी को
आप सब लोगों को..... |
पर दर्द सीने में छुपाये, झेल रहीं हूँ इस होने वाले
परिवर्तन को |
भाई बना मजदूर-सा
इधर-उधर भाग रहा
कभी देखा न था काम करते उन्हें
सदा किया मैंने, काम उनका था
आज जैसे वह, उतार रहे थे कर्ज़ मेरा
बड़े भैया तो दिख भी नहीं रहे थे
बेहद प्यार किया, छोटे से ही मुझे
अब लगे हैं खातिरदारी में
छोटी प्यारी बहन के घरवालों की
खुशामद में.....
कोई दुःख न रहे उनकी बहन को |
छोटा भाई, मेरा प्रिय साथी,
बचपन का.... |
साथ खेला, पढ़ा, झगड़े भी हम
आज वह भी है व्यस्त
मुझे भेजने में पराया घर |
क्या बताऊँ दीदी के विषय में
मेरे दिल के सबसे निकट
गोद में ढोया अक्सर छुटपन में
खुद दुबली वह, मैं मोटी-भारी
जाने कैसे संभाला हमेशा मुझे
प्यार-दुलार उनका, पढ़ाना उनका
याद बहुत आएगा |
कैसे जाऊँगी कल
छोड़कर इन सबको
आँखें धाराप्रवाह बहने लगीं |
यही नहीं, मेरे अन्य
सगे-सम्बन्धी भी
बहुत मानते हैं, प्यार करते हैं
सब दौड़-भाग रहे हैं
दो पल बात करने को तरस रही हूँ
मैं भी उठ पड़ती हूँ
मदद में इनकी |
कभी संभाल रही दीदी की
साल भर की बेटी को
कभी भाइयों को
पिला रही पानी-शरबत |
दिल में मच रही हलचल है
पूरा कुनबा लगा है
सिर्फ एक बेटी को विदा करने में |
सब खुश हैं कितने
एक मैं ही हूँ दु:खी,
डरी-सहमी, कैसे बनाऊँ
संतुलन— दिल, दिमाग, परिजन और
पराये घर के बीच |
आ ही गयी वह घड़ी
विदाई की..... |
माँ, भाभी, दीदी
बड़ी माँ, छोटी बहन,
और मैं....
रुलाई रुक नहीं रही
रोने की मानो
चल रही हो प्रतियोगिता |
जो भी गले लगाता मुझे,
छोड़ती नहीं मैं
अलग होने का जी नहीं करता
काश!!! रोक ले कोई मुझे.... |
याद है मुझे
किसी को भी नहीं छोड़ा था मैंने
गले से लगी थी,
हर किसी के |
बड़े पापा, पापा, बड़े भाइयों,
बड़ी माँ, माँ, बड़ी दीदियों,
छोटे भाई, बहन
भतीजे-भतीजी सबके |
एक मात्र प्यारी बुआ
जो मुझे थीं जान से प्यारी, उनके भी |
अजब दृश्य था यह
गूँज रहा था पूरा घर
रोने के स्वर से |
पिता से लगकर गले
खूब रोई
अपनी हर गलती की मांगती रही माफ़ी
पिता भी रोते रहे, कहते रहे
"नहीं बेटी, तूने तो कभी कोई गलती की ही नहीं” |"
कलेजा और भी मुँह को आने लगा |
माँ ने कहा
"ससुराल में भी ऐसे ही बने रहना |"
दीदी ने दीं, कुछ शिक्षाएं
अश्रु, सिसकी, और तब भी उनकी
शिक्षा- चिपट गयी मैं, कहा –
कुछ नहीं सुनना, सीखना है मुझे
बस यहीं अपने पास रहने दो मुझे |
भैया ने दी सांत्वना
बस, कल ही मैं आऊँगा लेने
अभी तो चली चल |
काँधे का सहारा देकर लाये
सजी-सँवरी सवारी तक |
छोटा भाई खड़ा था, रोता हुआ
पानी और लड्डू हाथ में लेकर |
मैंने भर लिया उसे बाहों में
सीने से उसके लगकर
रोई खूब |
भाई अब कैसे बीतेगा दिन
बिना तेरे |
कौन मेरा साथी होगा?
बस छूट गया यहीं सब कुछ
कांपते होंठ, रुंधे गले,
धाराप्रवाह अश्रु,
शिथिल पड़ा शारीर
जैसे प्राण ही न हों
डगमगाते कदम
कांधों का सहारा
और ओझल होते लोग |
आज इस उत्सव में शामिल
कितने ही लोग बिछड़ चुके हैं
जब भी सोचती हूँ,
दिल भर आता है
आँखें डबडबा जाती हैं,
कितना योगदान था उनका
आज वो रहे नहीं
मेरे जीवन को सवाँर कर
कहाँ चले गए?
कृतज्ञता से झुक जाता है सिर
शत शत नमन करती हूँ उन्हें |
आँखें तो बस बहती ही रहती हैं
कैसे रोकूँ ये आँसू ???
मायका छूट गया पर
हृदय में मैंने अब भी बसाया
हुआ है प्यारा मायका |
मायके के दुलार का
एहसास होता है
विदाई के वक़्त |
-- मधु रानी
२५/११/२०१६
